क्या मैं तुम्हारा अंश नहीं…
पापा….
क्या मैं तुम्हारा अंश नहीं…
फिर क्यों तुमको मुझसे प्यार नहीं…..
क्या मैं तुम्हारी प्रार्थना नहीं
फिर क्यों मैं तुमको स्वीकार नहीं….
क्यों तुम मुझे मारना चाहते हो..
क्या मैं इस जीवन की हक़दार नहीं…
क्या लड़की होना मेरा गुनाह है….
इसलिए तुम्हें मेरा इंतजार नहीं….
क्या हो जाता अगर मैं इस दुनिया में रखती कदम….
क्या मुझसे रंगीन होता तुम्हारा संसार नहीं…
मेरा दिल भी धड़कता है तुम्हारे लिए….
मैं भी जीना चाहती हूं पापा, सांस लेना चाहती हूं
मैं भी खेलना चाहती हूं तुम्हारी गोद में….
मैं आना चाहती हूं तुम्हारी दुनिया में..
फिर क्यों…क्यों… क्यों….पापा….
ये सवाल न जाने कितनी अजन्मी बच्चियां अपनी मां की कोख में से चीख चीख कर पूछती होंगी जब कुछ बेरहम औज़ार उनका गला घोंटते होंगे। रूह कांपती है और गुस्सा आता है अपने समाज की इस सोच पर कि पेट में पल रही जान अगर एक बच्ची की है तो उसको खत्म करने का हक है माता पिता को।कई सवाल बेचैन करते हैं मुझे- कैसे अपने ही माता पिता अपनी ही बच्ची का खून कर सकते हैं? क्यों एक मां जो खुद एक औरत है, अपनी बच्ची को बचा नहीं पाती? क्यों इतना पढ़ने लिखने के बावजूद हमारी मानसिकता ज्यों की त्यों है कि बेटा पैदा हो तो जश्न और बेटी पैदा हो तो मातम।
बहुत सोचती हूं इन सवालों को लेकर। बातें तो हम आज बड़ी बड़ी करने लगे हैं, विकास की, तरक्की की। लेकिन बेटियों के मामले में ये बातें कहां खो जाती हैं? लोग कहते हैं इसके मुख्य कारण गरीबी और अशिक्षा है। लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती। अगर ऐसा है तो लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या दिल्ली,पंजाब और हरियाणा जैसे संपन्न राज्यों में सबसे कम क्यों ? मैंने तो बहुत पैसे वाले शिक्षित परिवारों को बेटे के लिए प्रार्थनाएं करते देखा है, ये कहते सुना है कि चलो बेटा हो गया. बेटी हो जाती तो बहुत दुख होता , बहुत परिवारों में बेटी के जन्म पर उदास चेहरों को देखा है। कितने परिवारों में बेटे की चाह में तीन चार बेटियों को पैदा होते देखा है।
जब हमने इसी मुद्दे पर ज़िंदगी लाइव बनाया तो शो पर आईं मीतू खुराना। मीतू खुद एक डॉक्टर हैं और उनके पति भी । जब मीतू गर्भवती हुईं तो उनके पति ने धोखे से उनका अल्ट्रासाउंड कराया और जब ये पता चला कि मीतू के पेट में दो बच्चियां पल रही हैं तो मीतू पर दबाव बनाया जाने लगा कि कम से कम एक बच्ची को वो मार डालें। लेकिन मीतू ने इस पाप में हिस्सा लेने से साफ मना कर दिया। ये काम आसान नहीं था उनके लिए। बहुत यातनाएं, ज़ुल्म सहने पड़े। लेकिन मीतू ने हिम्मत नहीं हारी और इस ज़िद पर अड़ी रहीं कि वो अपनी दोनों बच्चियों को जन्म भी देंगी और पालेंगी भी। आज मीतू अपने पति से अलग रहती हैं,अपनी दोनों बेटियों को बहुत खुशी से पाल रही हैं और समाज में फैले कन्या भ्रूण हत्या के घिनौने अपराध के खिलाफ लड़ रही हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, मीतू अपने पति के खिलाफ कन्या भ्रूण हत्या निरोधक कानून के तहत शिकायत दर्ज करने वाली पहली महिला भी बनी जिसके लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है।
मीतू एक मिसाल बनी हैं ऐसी सभी महिलाओं के लिए जो खुद को कमज़ोर मान कर पति औऱ परिवार वालों के दबाव और बहकावे में आकर अपने ही गर्भ में पल रही मासूस बच्ची की कातिल बन जाती हैं। क्यों है इतनी बेबसी हमारे अंदर ? क्यों हम महिलाएं इतनी लाचार हो जाती हैं घर वालों की इस मांग के आगे कि बेटे को जन्म दो। क्यों हम आवाज़ नहीं उठा पाते कि चाहे बेटा हो या बेटी, हम उसे जन्म देंगे चाहे कुछ भी हो जाए।
आज मैं हर महिला, हर मां, हर बहन, हर सास, हर ननद, हर बेटी से कुछ सवाल पूछना चाहती हूं। कभी आपने सोचा कि क्यों आप एक महिला होने के बावजूद घर में बेटा पैदा होने की दुआएं मांगती हैं ? क्यों आप घर में पैदा होने वाली एक और बच्ची को कोख में मार डालने की कोशिश करती हैं ? जिस खानदान का नाम आगे बढ़ाने की आपको फिक्र सताती है, क्यों उस खानदान के नाम पर हत्या का पाप चढ़ाती हैं आप ? आपको चिंता होती है कि अंतिम संस्कार करने के लिए बेटा नहीं हुआ तो मोक्ष नहीं मिलेगा आपको, कभी ये सोचा कि कोख में पल रही बेटी को मार कर क्या स्वर्ग ( अगर वो कहीं है) जा पाएंगी आप ?
ईमानदारी से इन सवालों के जवाब खुद से पूछिए क्योंकि लता मंगेशकर, किरण बेदी, सुष्मिता सेन, सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल, कल्पना चावला, मैरी कॉम की सफलता पर सर फख्र से ऊंचा करना तो सब चाहते हैं लेकिन एक और लता, किरण, सुष्मिता, सानिया,सायना,कल्पना,मैरी को अपने घर में पैदा नहीं होने देना चाहते…क्यों ? पूछिए खुद से इससे पहले कि बहुत देर हो जाए…बेटे तो हों परिवारों में, लेकिन बहू न मिल पाए, भाई तो हों पर कलाई पर राखी बांधने वाली बहने ना मिल पाएं…चिता को आग देने वाला खानदान का चिराग तो हो पर घर को रोशन करने वाली बिटिया न मिल पाए।
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