पॉवर ऑफ 49

पॉवर ऑफ 49

हाल ही में मुझे एक बहुत दिलचस्प कैंपेन का हिस्सा बनने का मौका मिला। कैंपेन का नाम है पॉवर ऑफ 49। हम में से बहुत कम लोगों का ध्यान इस तरफ जाता होगा कि इस देश में 49 फीसदी वोटर महिलाएं हैं। इसके बावजूद महिलाओं के लिए संसद में 33 फीसदी आरक्षण का बिल अब तक पास नहीं हो सका है।

संसद तो वैसे बहुत दूर की बात है, किसी भी नेता के भाषण में महिलाओं के मुद्दे कितने सुनाई देते हैं, पार्टियों की दिशा जब तय होती है तो महिलाओं का कितना ध्यान रखा जाता है। वोट बैंक की राजनीति करते समय सबकी बात होती है मसलन जाट वोटर, दलित वोटर, मुस्लिम वोटर, लेकिन महिला वोटर की बात नहीं होती। शायद हमारे नेता ये मान कर चलते हैं कि एक महिला तो उसी पार्टी या उम्मीदवार को वोट देगी जिसे उसके घर के पुरुष देंगे। लेकिन अगर ऐसा है तो अब ये सोच बदलने का वक्त आ गया है। पॉवर ऑफ 49 के ज़रिए हमने देश भर की महिलाओं को ये समझाने की कोशिश की कि वोट उसे देना है जो अब महिलाओं के मुद्दों की बात करे। नेताओं और दलों को अब ये समझना होगा कि 49 फीसदी वोटर की ताकत जाग गई है और जागरूक हो गई है। उनकी समस्याओं पर गौर नहीं किया तो अब वोट नहीं मिलेगा।

हमने कई चर्चाएं कीं। मुख्यत जो मुद्दे सबसे ज़्यादा अहम हैं इस वक्त, वो हैं सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा, घरों में सुरक्षा, स्वास्थय और स्वच्छता, शिक्षा और रोज़गार। निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर सबका ध्यान गया, विरोध प्रदर्शन हुए, देश के कोने कोने से एक क्रांति ने दस्तक दी। सरकार को ध्यान देना पड़ा। नया बलात्कार कानून पास हुआ। तेज़ाब से हो रहे हमलों को गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखा गया। लेकिन हालात बहुत ज़यादा नहीं बदले। आज भी हम आए दिन बलात्कार और तेज़ाब हमलों की खबरें पढ़ते, देखते रहते हैं। मुझे लगता है कि महिलाओं को इस बार वोट देने से पहले ये ज़रूर देखना चाहिए कि जिस पार्टी को वो वोट देने जा रही हैं उसके घोषणा पत्र में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर क्या योजनाएं हैं।

घर में सुरक्षा की बात करें तो बहुत सारे पहलू हैं। कन्या भ्रूण हत्या हो या दहेज हत्या, बाल यौन शोषण हो या घरेलू हिंसा, हमारे समाज का ताना-बाना कुछ ऐसा है कि घरों में हो रहे इन अपराधों की तो कोई गिनती ही नहीं। ज़्यादातर महिलाओं को घर की इज़्ज़त की दुहाई देकर चुप करा दिया जाता है, जो शिकायत करने की हिम्मत रखती हैं उन्हें सिर्फ तिरस्कार मिलता है। लिंग अनुपात हरियाणा जैसे राज्य में 1000 लड़को के मुकाबले 877 लड़कियों तक गिर गया है। ऐसे अपराधों को रोकने के लिए ज़रूरी है कि पुलिस बल में महिलाओं की संख्या 5 फीसदी से बढ़ाकर 33 फीसदी करने पर विचार हो। पुलिस को संवेदनशील बनाया जाए। क्या आप ने पता किया कि पुलिस सेवा में सुधार लाने के लिए कौन सी पार्टी विचार कर रही है|

आज भी भारत में 60 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं। इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा भुगतती हैं महिलाएं। बाहर खुले में शौच जाने की वजह से कई बार उनके साथ छेड़खानी होती है। महिलाओं की बहुत सी बीमारियों की जड़ ही है उनका खुले में शौच जाना। क्या कोई भी दल इस परेशानी को गंभीरता से लेता है क्या कोई भी दल ये वादा करेगा कि सत्ता में आने के बाद देश भर में महिलाओं के लिए कम से कम 1 करोड़ स्वच्छ सार्वजनिक शौचालय बनाएं जाएंगे|

महिलाओं और बच्चियों के स्वास्थय की बात करें तो बहुत दुख होगो आपको ये जानकर कि देश में पैदा होने वाली 1.2 करोड़ बच्चियों में , 10 लाख बच्चियां अपने पहले जन्मदिन तक जीवित नहीं रहतीं और 30 लाख बच्चियां अपना 15वां जन्मदिन नहीं मना पातीं।

शिक्षा की हालत ये है कि देश में 5-9 साल के बीच की 53 फीसदी यानि आधी से ज़्यादा बच्चियां अशिक्षित हैं । जो स्कूल जाती भी हैं उन्हें मासिक धर्म शुरू होते ही स्कूल जाना छोड़ देना पड़ता है। आज भी बहुत बड़ी संख्या में लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है जिसकी वजह से गर्भावस्था के दौरान भी बहुत मौते होती हैं।

ये कैसा देश है जो जन्म देने वाली महिला की ही जान की फिक्र नहीं करता। ये कैसा देश है जहां के कुछ गांवों में लड़कियां बची ही नहीं हैं। ये कैसा देश है जहां आज भी 60 करोड़ लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है जिसका सबसे ज़्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है। ये कैसा देश है जहां बच्चियों की पढ़ाई पर किसी का ध्यान नहीं।

जैसा भी हो, देश है तो ये हमारा ही और इस देश की महिलाओं की इस हालत के लिए हम महिलाएं ही ज़िम्मेदार हैं। हम भूल जाते हैं कि हमारे पास एक ऐसी ताकत है जिसके बल पर हम अपने सारे मुद्दे उठा सकते हैं, वो ताकत है वोट की ताकत, जिसके दम पर हम राजनीतिक दलों और नेताओं को ये साफ संदेश दे सकते हैं कि अगर हमारी तरफ ध्यान नहीं दिया तो हमारा वोट भी नहीं मिलेगा।

अब लद गए वो ज़माने जब घर के आदमी जिस चुनाव चिन्ह पर मोहर लगाने को कहते, महिलाओं चुपचाप लगा देतीं। अब वक्त आ गया है कि हर महिला अपने क्षेत्र के उम्मीदवार से पूछे कि वो और उसकी पार्टी महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थय और रोज़गार के लिए क्या करेंगे।

यकीन मानिए, बदलाव होगा और ज़रूर होगा। बस सारे काम छोड़ कर वोट देने ज़रूर जाइए क्योंकि जब वोट करेगी नारी तभी जीत होगी हमारी…

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