काश हम भी ऐसे होते
शायद मैंने आपको पहले भी बताया था कि मैं पिछले साल ३ महीनों के लिए लंदन गई थी एक स्कॉलरशिप पर। दूसरे देशों में जाना, घूमना, रहना,वहां के लोगों से मिलना जुलना कई मायनों में आपकी सोच को बदलता है, विकसित करता है।
हर वक्त आप अपने देश की तुलना उस देश से करते है, अपने लोगों के व्यवहार की तुलना वहां के लोगों से करते हैं।
लंदन रहते हुए मैंने योरोप के कुछ दूसरे देश भी घूमे।कुछ खास अनुभव हुए जो आज ५ महीने बाद भी याद हैं और शायद हमेशा याद रहेंगे। उन अनुभवों ने सोचने पर मजबूर किया, बहुत कुछ सिखाया..सोचा आज आपसे बांटूं । शायद हम सब मिलकर कुछ बदलाव ला सकें।
मैंने कहीं पढ़ा था कि लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के कुछ ख़त रखे हैं। मैं वहां गई और उन ख़तों के बारे में पूछा। मुझे बताया गया कि वो बहुत कीमती दस्तावेज़ हैं इसलिए वो लोग उन्हें निकाल कर रखेंगे और तब मुझे बुलाया जाएगा। और वाकई ऐसा हुआ भी। मेरे पास एक मेल आया और मैं वापस पहुंची। जिस हिफाज़त से लक्ष्मीबाई और कुछ राजाओं के ख़त वहां रखे थे उसे देखकर मैं हैरान हो गई । हमारे देश के पुस्ताकलयों में न जाने कितनी बेशकीमती किताबें दीमक की भेंट चढ़ चुकी हैं और अभी भी चढ़ रही हैं। न जाने कितनी पुरानी फिल्मों के प्रिंट्स तबाह हो चुके हैं लेकिन किसी को परवाह नहीं।
उस शाम काफी देर तक लाइब्रेरी में बैठी रही । वहां से कुछ दूरी पर ही ट्यूब स्टेशन था। लौटते वक्त मैं पैदल वहां पहुंची और ट्रेन में बैठने ही वाली थी कि अचानक याद आया कि मैं अपना सैमसंग गैलेक्सी टैबलेट लाइब्रेरी में चार्जिंग पर लगा छोड़ आई। आप समझ ही सकते हैं मेरा क्या हाल हुआ होगा। बेतहाशा दौड़ी और वापस लाइब्रेरी पहुंची। गार्ड से बहुत मिन्नत की कि मुझे अपना बैग बाहर ही छोड़ कर अंदर जाने दे लेकिन वो नहीं माना। वहां लोग नियम के बहुत पक्के होते हैं, चाहे कुछ हो जाए वो नियम नहीं तोड़ते। सो मुझे बैग को नियम के मुताबिक लॉकर में ही जमा करना पड़ा। फिर भागते हुए उस रीडिंग रूम में पहुंची और हांफते हुए गार्ड से बोली कि मेरा टैब वहां छूट गया है। जानते हैं क्या हुआ गार्ड ने बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखा और बोला- छूट गया था तो कल आ कर ले लेतीं आप। ऐसे भागने की क्या ज़रूरत थी। इतना कह कर वो गया और मेरा टैबलेट लाकर मेरे हाथ पर रख दिया। मैंने मुस्कुरा कर उसको थैंक यू कहा और मन में सोचा कि अगर मेरे अपने देश की किसी पब्लिक लाइब्रेरी में मेरा फोन छूट जाता तो क्या वापस मिलता ? जवाब आप सब जानते ही हैं । ऐसा नहीं है कि मिलने कि बिलकुल गुंजाइश नहीं लेकिन ऐसी खुशकिस्मती की प्रतिशत बहुत कम होगी।
फिर मैं स्विटज़रलैंड गई । वहां हमारे एक मित्र रहते हैं। वो हमें एक फार्म पर ले गए। वहां तरह तरह के सेब, सेब का रस और कुछ और फल और सब्ज़ियां बहुत करीने से रखे थे। हमारे मित्र ने सेब उठाए, एक मशीन से सेब का रस कुछ गिलासों में भरा और एक डिब्बें में पैसे डाल दिए । मैंने उनसे पूछा इस फार्म का मालिक कहां है तो उन्होंने बताया कि मालिक हर वक्त वहां नहीं बैठता। लोग आते हैं, सामान लेते हैं और पैसे रख कर चले जाते हैं। अब तो आप समझ ही सकते हैं कि मेरे दिल पर क्या बीत रही होगी। हम तो अपने देश में दुकानदार होने के बावजूद हाथ साफ करने में महारथ रखते हैं।
पूरे योरोप में कहीं भी चले जाइए, हर चर्च में मोमबत्तियां रखी होंगी और आकार के हिसाब से उनकी कीमत लिखी होगी। लेकिन उन पर नज़र रखने वाला कोई नहीं होता। लोग जाते हैं, मोमबत्ती लेते हैं, पैसे वहीं रखे एक डिब्बे में डालते हैं और मोमबत्ती जला कर चले जाते हैं। चर्च एकदम साफ सुथरे और शांत। ये मेरे लिए सबसे बड़ी हैरत की बात थी और अपने देशवासियों के व्यवहार के लिए शर्मिंदा होने की बात भी। हमारे यहां धर्म के नाम पर जितनी चोरियां होती हैं उसका तो कोई हिसाब ही नहीं। किसी भी धार्मिक स्थान पर चले जाइए, आपकी जेब से पैसे निकालने वालों की होड़ लगी है। कोई ईश्वर के नाम पर लूटता है, कोई भीड़ का फायदा उठा कर जेब काटता है, कोई आपकी चप्पल ही लेकर रफू चक्कर हो जाता है। हम अपने धार्मिक स्थलों पर जाकर क्या वाकई ईमानदारी दिखाते हैं ? क्या वाकई अच्छे इंसानों जैसा व्यवहार करते हैं ? नहीं…हम धक्का मुक्की करते हैं, गंदगी फैलाते हैं, जल्दी दर्शन लेने के लिए जुगाड़ भी लगाते हैं और रिश्वत भी देते हैं।
अपनी उस यात्रा से लौट कर मुझे लगा कि काश हम भी ऐसे होते कि हमारे देश से लौटने वाला हर पर्यटक हमारे देश की ऐसी ही मीठी यादें लेकर लौटता जैसे मैं योरोप के देशों से लौटी। काश हम भी एक ईमानदार, अनुशासित, सफाईपसंद और सही मायनों में धार्मिक समाज की रचना कर पाते….काश !
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