Suicide
2010 में विवेका नाम की एक मॉडल ने खुदकुशी की थी….उस वक्त मैंने एक लेख लिखा था । २ दिन पहले सुबह अचानक एक्ट्रेस जिया खान की खुदकुशी की खबर सुनी। दिल बैठ गया । बहुत दुख होता है एक खूबसूरत ज़िंदगी का यूं अंत होते देख।
वजह कोई भी हो, क्या वो इतनी बड़ी हो सकती है कि एक इंसान जीने की ही तमन्ना छोड़ दे ? क्या हम इसे रोक नहीं सकते ? ३ साल पहले लिखा अपना वो लेख आज एक बार फिर आपसे बांट रही हूं….
जून, २०१०—एक और मॉडल की खुदकुशी…एक खूबसूरत औरत की मौत…एक सिलेब्रिटी की मौत…ग्लैमर की दुनिया से जुड़े लोगों की मौत भी सुर्खियों में रहती है। बहुत कुछ होता है कहने सुनने को। मीडिया के लिए ढेर सारा मसाला भी। खुदकुशी की वजहों पर जमकर चर्चा होती है। मॉडल के दोस्त, तमाम पेज 3 चेहरे कुछ न कुछ कहने सामने आ जाते हैं जिन लोगों से शायद कई साल में उसकी बातचीत भी नहीं हुई होगी वो भी अचानक उसके करीबी बन जाते हैं और जो शायद बेहद ‘करीब’ थे वो अचानक अजनबी हो जाते हैं या महज़ ‘अच्छे दोस्त’ ।
मॉडल के करियर की ही तरह उसकी मौत की खबर भी धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में खो जाती है। नफीसा और विवेका को अब तभी याद किया जाएगा जब एक और मॉडल या एक्ट्रेस खुदकुशी कर लेगी। और तब एक बार फिर शुरू होंगी वही बातें कि ग्लैमर की दुनिया में कितना तनाव है। कैसे इस चकाचौंध में लोग ड्रग्स के अंधे कुएं में गिरते चले जाते हैं। कैसे इस हाइ सोसाइटी में रिश्ते एक मज़ाक बन कर रह गए हैं और इन बातों के बहाने उस मरी हुई मॉडल की ज़िंदगी के हर राज़ पर से पर्दा उठता रहता है।
क्या हासिल होता है हमें इन बातों से, क्या फर्क पड़ता है हमारी ज़िंदगी पर इस बात से कि तनाव में एक मॉडल ने खुदकुशी कर ली? कोई फर्क नहीं पड़ता…जानते हैं क्यों? क्योंकि हम सिर्फ उसे एक मॉडल/एक्ट्रेस मान लेते हैं इंसान नहीं । जबकि सच ये है कि हम में से हर दूसरा इंसान किसी न किसी तनाव से परेशान है। किसी को नौकरी में पीछे रह जाने का तनाव है, किसी को रिश्ते में हार जाने का तनाव है, किसी को पैसे कमाने का तनाव है । लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते कि ये तनाव हमारी भी जान ले सकता है। हम अपने शरीर के तमाम चेकअप करवा लेते हैं पर कभी इस बात पर गौर नहीं करते कि हमारी मानसिक स्थिति कैसी है। क्यों हम इतने चिढ़चिढ़े हो गए हैं क्यों हम इतना चीखते चिल्लाते है क्यों हमारी बर्दाश्त की सीमा इतनी कम हो गई है। कोई इन बातों पर ध्यान नहीं देता और शायद यही वजह है कि 2020 तक डिप्रेशन दुनिया की दूसरी सबसे जानलेवा बीमारी बन जाएगी।
हमारे समाज में मानसिक परेशानी के लिए एक मनोचिकित्सक या काउंसलर के पास जाना एक मजाक का विषय माना जाता है क्या होगा अगर किसी को पता चल गया कि मैं एक मनोचिकित्सक से मिलने गया/गई था/थी। ये शर्म और झिझक हमें रोकती है अपना इलाज करवाने से कि लोग हमें पागल समझेंगे!
मानसिक परेशानियों को पहचानना, अपने खुद के बर्ताव पर ध्यान देना और मनोचिकित्सा या मेडिटेशन या स्प्रिचुअल/होलिस्टिक हीलिंग से अपना इलाज करना और अपनी रोज़मर्रा की भागदौड़ में से कुछ लम्हे उस काम के लिए निकालना जो हम दिल से करना चाहते हैं। ये बहुत ज़रूरी है हम सबके लिए। विवेका बाबाजी की मौत को सिर्फ एक खबर ना मानें एक सीख मानें हम सबके लिए क्योंकि तनाव किसकी ज़िंदगी में कब और किस इंतहा तक हावी हो जाए ये कोई नहीं जानता सिवाय हमारे खुद के। हम ये बात समझ लें तो ठीक वर्ना तनाव से खुदकुशी तो हर रोज़ होती हैं। बस खबरें तो सिलेब्रिटीज़ की खुदकुशी की बनती हैं आम आदमी की नहीं।
२०१० और आज २०१३….कुछ नहीं बदला शायद। एक और ज़िंदगी मायावी दुनिया की चकाचौंध, रंगीन सपनों, आकांक्षाओं और बेतहाशा दौड़ की भेंट चढ़ गई। काश कि उसने जान देने से पहले किसी से बात की होती। काश उसका परिवार उसके साथ होता, काश उसके दोस्त उसके पास होते….काश!
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