क्या माता पिता फेल हो रहे हैं ?

क्या माता पिता फेल हो रहे हैं ?

आज मैं आप सबका ध्यान एक बहुत गंभीर समस्या की तरफ खींचना चाहती हूं। और वो समस्या है हमारे बच्चों की ज़िंदगी से जुड़ी। आए दिन हम लोग अखबारों में या अपने शहर, गांवों, कस्बों में छोटी उम्र के बच्चों और युवाओं की खुदकुशी की खबरें पढ़ते रहते हैं या सुनते रहते हैं।

बहुत दुख होता है न ऐसी खबरें जान कर ? ऐसा लगता है कि जिस बच्चे के सामने सारी उम्र पड़ी थी, एक अच्छी ज़िंदगी हो सकती थी जिसकी, उसके सामने ऐसी क्या तकलीफ आ गई कि उसने ज़िंदगी से सारी उम्मीद छोड़ कर मौत को गले लगा लिया? ऐसा क्या हो गया कि हंसने खेलने की उम्र में एक बच्चा निराश हो गया, हिम्मत हार बैठा और इस दुनिया को छोड़ कर चला गया?

मैंने बच्चों और युवाओं की खुदकुशी पर ज़िंदगी लाइव के दो एपिसोड बनाए। दोनों एपिसोड में मरने वाले बच्चे के माता पिता आए, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो दुनिया के हर बच्चे से ये कहना चाहते थे कि जो उनके बच्चे ने किया वो कोई और न करे। वो ये दिखाना चाहते थे कि क्या होती है उन माता पिता की हालत जिनका जिगर का टुकड़ा आत्महत्या कर लेता है। कितना बेबस महसूूस करता है वो परिवार जो अपने बच्चे की तकलीफों को समझ नहीं पाता औऱ उसे बचा नहीं पाता।

हमारे पहले एपिसोड में तीन बच्चों के माता पिता आए। एक बच्चे ने रैगिंग से तंग आकर, दूसरे ने खराब रिज़ल्ट की वजह से और तीसरे ने समय पर फीस न भर पाने और टीचर्स से तंग हो जाने पर आत्महत्या कर ली थी। दूसरे एपिसोड में हमने उन माता पिता को बुलाया जिनके बच्चे हमारे देश के सबसे नामी गिरामी टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट आईआईटी में पढ़ते थे, लेकिन न जाने ऐसा क्या हुआ उनके साथ कि उज्जवल भविष्य की गारंटी होने के बावजूद उन्होंने खुदकुशी के अंधकार को गले लगा लिया…

बहुत ज़्यादा दर्दनाक थे दोनों ही एपिसोड। एक एंकर होने के नाते मेरे लिए बहुत मुश्किल भी। क्या पूछा जाए उन माता पिता से जिनकी दुनिया ही उजड़ गई। उनमें से हर एक का रो रो कर बुरा हाल था, खासकर मांओं का। हर मां यही कहती रही कि क्या ये दिन देखने के लिए मैंने अपने बच्चे को जन्म दिया था। वो तो जननी है, अपने बच्चे की मौत देख कर उस पर क्या बीती होगी ये आप और हम शायद कल्पना भी नहीं कर सकते, न कोई शब्द उस दर्द को बयां कर सकते हैं। बस आंखों से आंसू बहते जाते हैं, सारी कहानी वो ही समझा जाते हैं।

मैं भी एक मां हूं। उन में से हर मां से मिलकर मुझे बेहद तकलीफ हुई। और उसके बाद से जब जब अखबार में पढ़ती हूं कि एक और बच्चे ने खुदकुशी कर ली तो यकीन मानिए मैं अंदर तक सिहर उठती हूं ये सोच कर कि इस बच्चे की मां पर क्या बीत रही होगी। आंकड़े डराते हैं। हमारे देश में कम उम्र में हो रही आत्महत्याओं की गिनती लगातार बढ़ रही है। न जाने कितनी मासूम ज़िंदगियां किसी न किसी वजह से खत्म हो रही हैं। हमारे देश का भविष्य खुदकुशी की भेंट चढ़ रहा है….

इसे रोकना ही होगा। वजह चाहे कोई भी हो, बच्चों की खुदकुशी को रोकने का इलाज एक ही है। संवाद। आपने साल भर अपने बच्चे पर चाहे पढ़ाई का कितना ही बोझ लादा हो, अच्छे रिज़ल्ट की चाहे कितनी भी मांग की हो, उसके रिज़ल्ट से एक दिन पहले उसके साथ बैठिए, वो डरा हुआ है इस बात को समझिए, उसको गले लगाइए और ये यकीन दिलाइए कि रिज़ल्ट में उसके नंबर चाहे कैसे भी आएं, आप उसका साथ देंगे और उस पर गर्व करेंगे। आज शायद आपको मेरी बात अजीब सी लग रही हो, ये लग रहा हो कि खराब नंबर आने पर बच्चे पर गर्व कैसे करें। एक बात याद रखिए, एग्ज़ाम में आए नंबरों से आपके बच्चे का भविष्य तो तय नहीं होता लेकिन आपके बर्ताव से ये तय ज़रूर हो सकता है कि आपका बच्चा जीना चाहेगा या आपकी डांट और बेइज़्ज़ती से बचने के लिए मरना पसंद करेगा। और इस मोड़ पर आप चाहें तो अपने बच्चे की ज़िंदगी बचा सकते हैं। छोटी उम्र में आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह तो पढ़ाई और अच्छे नंबरों का दबाव ही है लेकिन कुछ दूसरी वजहें भी हो सकती हैं। रैगिंग से परेशानी, छोटी उम्र का प्यार और उसमें मिला धोखा, नशे की लत, बदनामी का डर। लेकिन अगर आप गौर से देखेंगे तो आपको समझ आ जाएगा कि इन में से हर वजह का तोड़ एक ही है…अपने बच्चे से संवाद, बातचीत का दरवाज़ा खुला रखना। रैगिंग की अगर वो शिकायत करे तो उसको ये मत जताइए कि आपने कितने पैसे खर्च कर के उसको हॉस्टल में भेजा है, बल्कि उससे मिलने जाइए और उसके साथ हो रही ज़्यादती की शिकायत कीजिए। अगर आपके मासूम को लड़कपन का प्यार हो गया है तो उससे बात कीजिए, उसके दोस्त बनिए, उसको प्यार से समझाइए ताकि वो दिल टूटने पर किसी तरह की नादानी ना करे। अगर आपके बच्चे को नशे की लत लग गई है तो भी उस पर चीखने चिल्लाने या घर से निकाल देने से लत नहीं छूटेगी। हां आपका बच्चा आपसे ज़रूर छूट सकता है। उसके नशे की लत को छुपाइए मत, उस सच का सामना कीजिए और बच्चे का इलाज कराइए।

ज़िंदगी लाइव में रोते हुए हर माता पिता ने एक बार मुझसे ये ज़रूर कहा कि काश हमारा बच्चा एक बार हमें बता देता कि वो किसी परेशानी से गुज़र रहा है तो हम उसको कभी न मरने देते। मैंने उन सबसे पूछा कि क्या आपको आज ये पछतावा होता कि आप जान ही नहीं पाए कि आपका बेटा या बेटी किसी तनाव से जूझ रहे हैं और उन सबका जवाब था हां, आज हमें ये पछतावा होता है।

मैंने इन लोगों के बारे में आप सबको इसलिए बताया ताकि आपको न पछताना पड़े। आप अपने बच्चे को जन्म दिया है, उसे मौत के दरवाज़े तक मत धकेलिए। पढ़ाई भी ज़रूरी है, अच्छे नंबर भी और अच्छा भविष्य भी। लेकिन जब ज़िंदगी ही नहीं रहेगी तो अपने बच्चे के रिपोर्ट कार्ड का क्या करेंगे आप ? सोच लीजिए, बच्चे पर टॉप करने का दबाव डालते डालते आप खुद माता पिता के तौर पर फेल तो नहीं हो रहे?

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